बैतालरानी घाटी और मंदिर का इतिहास, रानी रश्मिमीदेवी जलाशय (छिंदारी बांध) , नर्मदा मंदिर, डोंगेश्वर महादेव(चोडरा धाम)

हमारे सफर की शरुवात हुई नगर पंचायत परपोड़ी से यहाँ से हम निकले तकरीबन 11.30 को हमारे सफर के लिए । यहाँ से गये गंडई फिर वहां से नर्मदा मंदिर, नर्मदा से छुईखदान होते हुए छिंदारी बांध फिर बैतालरानी घाटी । फिर वहाँ से वापस नर्मदा, यहाँ से गये हम लोग डोंगेश्वर महादेव (चोडरा धाम) और यहाँ हमारा सफर खत्म ।

सबसे पहले पहुचे नर्मदा मंदिर, यह रास्ते मे ही है आप कभी भी इस रास्ते से गुजरे तो आसानी से इसके दर्शन कर सकते है। यह जो मंदिर है इसकी खासियत यह है कि यहाँ एक कुंड है जिसमे से सदैव पानी जो है निकलते रहता है, जैसा कि अमरकंटक में जहाँ से नर्मदा नदी का उदगम हुआ है वहाँ है, यही कारण है कि इस जगह का नाम नर्मदा पड़ा है । यहाँ कुंड के बगल में ही नर्मदा माता का मंदिर भी बनाया गया है जो कि काफी खूबसूरत है ।
(नर्मदा से ही रास्ता है डोंगेश्वर महादेव (चोडरा धाम) जाने के लिए लगभग यहाँ से 10 किमी है जहाँ हम वापसी में गये ।)

नर्मदा मंदिर दर्शन के बाद हम निकले छुईखदान होते हुए छिंदारी बांध जिसको रानी रश्मिदेवी जलाशय के नाम से भी जाना जाता है । यहाँ का नज़ारा काफी खूबसूरत है, बांध जो है तीनो ओर से पहाड़ो से घिरा हुआ है, यहाँ का नज़ारा देखते ही बनता है। बांध के किनारे एक गार्डन भी बना हुआ है जहाँ बच्चों के खेलने के लिए झूले भी लगे हुए है, छुट्टियों में परिवार के साथ समय बिताने के लिए और पिकनिक के लिए बहुत ही उत्तम स्थान है ।
छिंदारी बांध के किनारे से ही रास्ता गया है जहाँ से होते हुए हम गए देवरचा, यहाँ से घाटी जो है 3 किमी है। चूकि यह इलाका पूरी तरह जंगलो से घिरा हुआ है यह नक्सल प्रभावित इलाकों में आता है इस लिए इस बीच रास्ते मे एक ITBP का एक बेस कैम्प भी देखने को मिलेगा ।
दूरी- बैतालरानी मंदिर और घाटी जो है, गंडई से लगभग 46 किलोमीटर, खैरागढ़ से 36 किलोमीटर, कवर्धा से 83 किलोमीटर, राजनांदगांव से 77 किलोमीटर, रायपुर से 120 किलोमीटर और दुर्ग से 90 किलोमीटर दूर स्थित है।
छुईखदान से लगभग 25 किलोमीटर है और उसी रास्ते मे 10 किलोमीटर पर रानी रश्मि देवी जलाशय (छिंदारी बांध) स्तिथ है ।
डोंगेश्वर महादेव (चोडरा धाम ) मंदिर गंडई से लगभग 15 किलोमीटर, खैरागढ़ से 36 किलोमीटर, कवर्धा से 58 किलोमीटर, राजनांदगांव से 75 किलोमीटर, रायपुर से 101 किलोमीटर और दुर्ग से 80 किलोमीटर दूर स्थित है।
उसी रास्ते मे गंडई से लगभग 5 किलोमीटर पर नर्मदा मंदिर स्थित है, (छुईखदान रोड पर) नर्मदा से ही डोंगेश्वर महादेव जाने के लिए रास्ता है ।
इस घाटी में आपको लगभग 19 तीखे हेयरपिन जैसे मोड़ मिलेंगे, घाटी में इन मोड़ो का अलग ही आंनद है, ओर जब आप घाटी के पीक पर पहुचते है वहाँ का नज़ारा अविस्मरणीय है, अद्भुत नजारा आप उन हसीन वादियो में कही खो जाएंगे ।
दूरी हुई कम- बैताल रानी घाटी के बन जाने से छुईखदान से बकरकट्टा की दूरी पहले 90 किमी थी जो 34 किमी रह गई है। साथ ही मप्र सीधे छत्तीसगढ़ से जुड़ गया है।
बैताल रानी घाटी की कहानी - जनश्रुति के अनुसार बैताल रानी का इतिहास कुछ इस प्रकार माना जाता है कि धमधा के राजा हरिश्चन्द्र का विवाह लांझि की राजकुमारी से हुई , उस समय ऐसी प्रथा थी कि विवाह में दहेज स्वरूप रानी को हिरे, जवाहरात, धन, दौलत के साथ साथ एक सेवक भी दिया जाता था जो रानी की सेवा करे । रानी को भी एक सेवक (राउत-चरवाहों की एक जाति) दिया गया उसकी सेवा के लिए ।
काफी समय बीतने के बाद भी रानी और राजा को संतान की प्राप्ति नही हुई और रानी और राजा में अब थोड़ी अनबन होने लगी । राजा अपने राज सत्ता में लीन रहने लगा । अब वो जो सेवक था वो रानी के काफी करीब था तो रानी ने उसे यह राज बता दिया कि राजा और रानी के बीच बात नही हो रही । तो उस सेवक ने रानी को ढांढस बंधाया और धीरे धिरे वह रानी के करीब आने लगा और रानी और उस सेवक में प्रेम हो गया । उन दोनों के बीच प्रेम इतना बढ़ गया कि वो एक दूसरे की बिना राह नही सकते थे, इस लिए दोनों ने मिलकर एक दिन योजना बनाई ओर महल से भाग कर लांझिगढ़ की तरफ निकल गए, ओर रास्ते मे बसंतपुर ओर बकरकट्टा के बीच के पहाड़ में आराम करने के लिए रुक गए । 
तब तक बात राजा को पता चल चुकी थी राजा गुस्से से आगबबूला हो गया वह अपने गुप्तचरो और सेना की एक टुकड़ी लेकर रानी को ढूंढने निकल गया, उनको पता चला कि वो इन जंगलो में कही छुपे है । अंततः राजा को वो दोनों मिल गए और राजा ने गुस्से में रानी के तीन टुकड़े कर दिए और उन्होंने उस सेवक को भी मार डाला ।
वहाँ मंदिर जो प्रतिमा स्थित है वो तीन टुकड़ो में बंटी हुई है जिसको बोला जाता है कि ये उसी रानी का शरीर है जो राजा के काटने के बाद पत्थर में तब्दील हो गया ।
घाटी के समाप्त होते ही स्थित है माँ बैताल रानी का मंदिर, अभी तक तो जो माँ की प्रतिमा है वो एक झोफडी मे है, पर उसके जस्ट पीछे मंदिर का निर्माण कार्य प्रगति पर है जो कुछ महीनों में पूरा हो जाएगा । अगर आप प्रतिमा को ध्यान से देखेंगे तो वो तीन भागों में विभाजित है । जन समूहों का भीड़ वह लगा ही रहता है पूजा के लिए । यह से आगे जाने पर 15 किमी आगे बकरकट्टा पड़ेगा । मंदिर से हम वापस हुए फिर से घाटी से होते हुए छुईखदान से नर्मदा ।
नर्मदा चौक से लगभग 10 किमी अंदर अंदर जाना पड़ता है डोंगेश्वर महादेव के लिए, यह रास्ता भी जंगल और एक छोटी सी घाटी होते हुए जाती है, जो मंदिर के ऊपरी हिस्से में पहुचाती है । 
मंदिर जो है पहाड़ के नीचे है जहाँ पर नंदी जी विराजमान है, यहाँ की खास बात यह है कि नंदी जी के मुख से हमेशा पानी निकलते रहता है, यह पानी पीछे पहाड़ से होकर आता है और नीचे बने कुंड में जाता है । 
यहाँ पहाड़ पर कई सुरंग भी बने हुए है, चारो ओर प्रकृति से घिरा हुआ मंदिर काफी मनमोहक़ लगता है । यह आने के लिए एक ओर रास्ता है जो गांव से होकर आता है जो मंदिर के नीचे वाले रास्ते से होकर आता है ।
यह से आप हमारे यूट्यूब वीडियो का मज़ा ले - 

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