"लता मंगेशकर : नागपुर से भंडारा रोड"

Date 9/8/2023

मैं और मेरे चार कलीग कॉलेज के 77 स्टूडेंट्स को ले कर इंडस्ट्रियल टुअर पर गये थे । सोनीपत हरियाणा, साथ में ही हमारा हरिद्वार, ऋषिकेश, और मसूरी का भी टुअर था । टुअर तो खत्म हो चुका था अब हमारी वापसी हो रही थी । दिल्ली से हमरा ट्रेन था नागपुर तक, फिर हमे नागपुर से ट्रेन चेंज करना था । नागपुर से हमने ट्रेन चेंज किया दुर्ग के लिए, हमारा सफर लगभग अंत होने वाला था । नागपुर में ट्रेन आयी, सारा सामान हमने ट्रेन में चढ़ाया फिर जगह देख कर सब बैठ गए, क्योंकि 77 सीट्स थी हमारी ट्रेन में तो सब अपने अपने हिसाब से एडजस्ट हो गए ।
ट्रेन में सब के लिए लंच आया था पर किसी ने खाया नही था । दरअसल सब वही ट्रेन का पैक्ड खाना खा खा कर पक गए थे, और एक तरफ सफर खत्म होने का गम था तो घर पहुंचने की थोड़ी जल्दी या एक्सिटमेंट क्योंकि सफर करके सब थक चुके थे, सब का खाना जैसे का तैसा पैक्ड रखा हुआ था । मैने मेरे एक स्टूडेंट से मजाक भीं किया जा खाना ट्रेन में बेच आ कुछ पैसे मिल जायेंगे 😄 । वो गया भी पर बोलता है सर खाना तो नही बिका और उल्टा एक पैकेट और मिल गया ।

अब सफर तो शुरू हो चुका था, खाना कोई खाने के मूड में नहीं था । और जैसे ही हम नागपुर स्टेशन से निकले ट्रेन में जो सामान बेचने वाले होते थे उनका आना-जाना लगातार लगातार लगातार चलता ही रहा, एक पल के लिए तो मैं खुद ही इरिटेट हो गया था। कुछ लोगो को तो मैं चिल्ला भी दिया भैया चुप हो जाओ । अब थोड़ी भूख तो सब को लगने लगी थी तो सब अपने हिसाब से जिसको जो खाना था वह खरीद रहा था खा रहा था जिसको चाय पीने वह चाय पी रहा था जिसको कॉफी पीनी है वह कॉफी पी रहा था , ये सब ऐसे ही चल रहा था । सब वही लोग थे बार-बार आ रहे थे जा रहे थे, अपना सामान बेच रहे थे। 

इस भीड़ में एक आंटी थी जो एक बोरी में अपना सामान लिए कुछ बेच रही थी, मोस्टली उसमे पॉपकॉर्न था और नड्डा ( हम छत्तीसगढ़ में तो यही बोलते है) वो बेच रही थी । एक दो बार हम लोगो ने भी उनसे खरीदा और खाया । अब उनको अपना सामान बेचना था तो पता नहीं इस ट्रेन के कितने बार चक्कर लगा चुकी थी, हमारे ही कोच में उनको आते कम से कम 10–12 बार से ज्यादा हो चुका रहा होगा । अब थोड़ी सी पहचान हो गई थी उनसे वो भी हम लोगो को थोड़ा पहचानने लगी थी, तो जब भी गुजरती थोड़ा सा रुक जाती हम लोगो के पास । शायद उनको भी अच्छा लग रहा था हम लोगो को देख कर ।
हमारी पूरी पलटन बैठकर गाना गा रही थी इंजॉय कर रहे थे इस सफर को जो कि खत्म होने वाला था । इतने में वो आंटी फिर से आई तो हम में से कुछ ने उनको बैठने के लिए रिक्वेस्ट किया वह बैठी भी हमारे साथ । कहीं न कहीं शायद वह भी हम लोग के साथ बैठना चाह रही थी । वह काफी खुश नजर आ रही थी हम लोगों को देखकर, फिर हम में से किसी ने उनसे गाना गाने के लिए रिक्वेस्ट किया पहले तो वह मना की बहुत मना की, फिर हम लोगों बहुत ज्यादा रिक्वेस्ट किया तो फिर उन्होंने गाना गाया । उसके बाद उन्होंने गाना गाना शुरू किया, मैंने अपना फोन निकाला और उनका वीडियो बनाना शुरू किया । 

"ओ साथी रे तेरे बिना भी क्या जीना... 
"ओ साथी रे तेरे बिना भी क्या जीना... 

और उनका गाना सुनकर मैं स्तब्ध रह गया । और मुझे ऐसा लगा शायद काफी समय बाद उन्होंने गाना गया वह खुद भी इतनी खुश हो गई वह गाना गाकर, और पूरा गाना गया उन्होंने, हम लोग बस एकदम शांति से उनको सुन रहे थे सारे के सारे । गाना खत्म होने के बाद सब ने उनके लिए ताली बजाई, उन्होंने ने बताया कि वह अपनी जवानी में गाना गाने की बहुत शौकीन थी । मैने उनसे कहा कि आंटी आपके सामने तो "लता मंगेशकर" भी फेल है । ऐसे फिर उनसे बातों की शुरुआत हुई, मुझे काफी इंटरेस्ट आ रहा था उनसे बात करने में तो फिर मैंने आगे उनसे बात करना शुरू किया।

सबसे पहले मैंने उससे पूछा कि –आप कहां रहती है?
 तो उन्होंने जवाब दिया– कि वह भंडारा में रहती हैं।

मैं– तो ये सामान आप खुद घर में बनाती है या कही से खरीद कर लाती है?
आंटी जी– मैं नहीं बनाती खरीद कर लाती हूं ।

मैं– तो ये आप का खुद का बिजनेस है या कोई और मालिक है जिससे खरीद कर लाती हो फिर जितना बिकता है उसका कमीशन कुछ मिलता है?
आंटी जी–नही मैं अपने पैसे से खरीद कर लाती हूं और  बेचती हूं ।

मैं–कहा से खरीदती है आप ये सब?
आंटी जी– नागपुर से, रोज सुबह 6 बजे करीब गीतांजली एक्सप्रेस से आती हूं भंडारा से नागपुर (आज कल ट्रेन बहुत लेट चल रहा है तो भंडारा से निकलते कभी कभी 9–10 बज जाते है), यहां से सामान खरीद कर फिर वापस सामान को बेचते हुए घर जाती हूं । जाते तक जितना बिक गया उतना बिक गया, बचे हुए सामान को फिर अगली सुबह जब आती हूं तो बेचते हुए आती हूं नागपुर और फिर से यहां सामान खरीदती हूं।

 तो ऐसे उनका सारा सामान बिकता है । 

मैं– कितने का सामान खरीदती है आप रोज?
आंटी जी– 800₹ का ।

मैं– कितने की कमाई हो जाती है?
आंटी जी– 1100₹

इतना सुनकर मैं चुप हो गया 🤐🤐🤐🤐🤐🤐
इस उम्र में वो सुबह से उठ कर यहां आती है सामान लेती है ट्रेन में सामान बेचती है और दिन भर में मुश्किल से 300₹ कमाती है, वो भी अगर सारा सामान बिक गया तो, नही तो वो भी नही ।

सब उनकी और मेरी बाते सुन रहे थे...

उनकी बाते सुनकर सब को एक सहानुभूति हुई उनसे.. फिर हममें से एक ने अपने पर्स से 500₹ निकाला और उनसे कुछ सामान लिया (यही कोई 20–30₹ का) और बोला की बाकी पैसे आप रख लीजिए । पर उन्होंने मना कर दिया, की वो बाकी पैसे नही रखेंगी । 

अब चुकी उनको पैसे वापस करने थे तो उन्होंने अपनी साड़ी में जो भी अब तक की कमाई के पैसे थे वो बांध कर रखे थे, उसको निकाला । काफी सारे नोट थे उसमे, मुड़े हुए, नए, पुराने, 10–20₹ के नोट ज्यादा थे उसमे और उन पैसों को उन्होंने गिनना शुरू किया । "उनके पूरे पैसे को भी मिलाकर उतना पैसा नही हुआ जितना वापस करना था" । फिर मैंने बोला रख लीजिए आंटी मत कीजिए वापस । मुझे लगा वो चुपचाप पैसा रख लेगी, पैसा तो उन्होंने रख लिया, उसके बाद फिर उन्होंने अपना सामान हम सब में बाटना शुरू कर दिया । हम में से जो नहीं मांग रहा था उसको भी एक एक पैकेट दे दे रही थी । हमने भी उनका मान रखते हुए वो पैकेट रखे । इन सब के बाद वो थोड़ी इमोशनल हो गई वो । शायद उन्हें किसी की याद आ गयी।

फिर आगे उन्होंने बताया की उनका एक बेटा था यंग था 19–21 साल का उसका उसका मर्डर हो गया 2 साल पहले । वो अपने जीजा जी लोगो को कही छोड़ने गया था, वहां क्या हुआ कैसे हुआ पता नही, बस इनको खबर मिली की इनके बेटे का मर्डर हो गया है 🤐🤐
पति का भी देहांत काफी पहले हो चुका है, तो अभी ये अपनी बेटी के साथ रहती है । ये सब बताते बताते भी वो हम सब में अपना सामान बाट ही रही थी । फिर जैसे भी अपने शब्दो में उन्होंने सब का शुक्रिया अदा किया । हम लोगो ने कहा कि हम सब को आशीर्वाद दीजिए बस और कुछ नही चाहिए 🙏🏻 उन्होंने सब के सिर में हाथ रख कर दिल से आशीर्वाद दिया ।

चुकी माहोल थोड़ा सा इमोशनल हो गया था तो इसको चेंज करने के लिए फिर थोड़ी मस्ती शुरू हुई, फिर एक जोडे को बुलाकर आशीर्वाद दिलवाया जा रहा था 😄 की उनकी जोड़ी सलामत रहे (साहिल–हर्षिता) 😉 आयुष्मान सर और मुझे जल्दी शादी के लिए आशीर्वाद मिला 😄 । फिर हमने उनसे पूछा की वो खाना खायेंगी क्या? तो उन्होंने हां कहा तो हमने खाने के पैकेट में से एक पैकेट निकल कर उनको दिया । उन्होंने वो पैकेट अपनी बोरी में रख लिए की वो घर पहुंच कर खाएंगी। उसके बाद हमने उनके साथ एक सेल्फी ली। 

फिर कुछ देर बाद भंडारा स्टेशन आगया और वो हम सब को आशीर्वाद देते हुए चली गई।

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